दिवाली क्यों मनाते है? जानिए इस पर्व से जुड़ी 5 रोचक कथाएं |

 

दिवाली क्यों मनाते हैं? 

इतिहास में कभी कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं हैं, उनके उपलक्ष्य में ही आज त्यौहार मनाये जाते हैं। हम क्रिसमस मनाते हैं क्योंकि उस दिन कुछ महत्वपूर्ण बात हुयी थी। लोग ईद मनाते हैं क्योंकि भूतकाल में उसी दिन कुछ अच्छा हुआ था। इस प्रकार हम उत्सव मनाते हैं।

हर त्यौहार के पीछे कोई कहानी है या फिर उसका कोई ज्योतिषी महत्व है। जैसे करवाचौथ पूर्णिमा का चौथा दिन होता है जिसमें महिलाएँ पूरा दिन अपने पति के कल्याण के लिए व्रत करतीं हैं और फिर उसके बाद उत्सव मनातीं हैं व अच्छा भोजन करतीं हैं। यह प्रथा है और इसके पीछे कुछ कहानियाँ हैं।

पांच दिनों का त्यौहार दीपावली

दीपावली का त्यौहार पांच दिनों तक मनाया जाता है. सबसे पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है. इस दिन नए वस्त्रों और बर्तनों को खरीदना शुभ माना जाता है. अगले दिन यमराज के निमित्त नरक चतुर्दशी का व्रत व पूजन किया जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था. इसे हम छोटी दीपावली के नाम से भी जानते हैं|

तीसरे दिन अमावस्या को दीपावली का पर्व होता है जिसमें लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है. अमावस्या की अंधेरी रात में दीयों की रोशनी शमां को रंगीन बना देती है. इसके अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. गोवर्धन पूजा में गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है और उसे भोग लगाया जाता है. उसके बाद धूप-दीप से पूजन किया जाता है. अंतिम दिन भैया दूज के साथ यह पर्व खत्म होता है|

हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्यौहार चला आ रहा है. लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है. लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं. मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बांटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं. अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है|

Diwali Stories in Hindi: दिवाली क्यों मनाते है? जानिए इस पर्व से जुड़ी 5 रोचक कथाएं

 दीपावली मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं व मान्यताएं हैं। इसी अनुसार देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे मनाने के तरीकों में भी विभिन्नता पाई जाती हैं। आइए जानते हैं आखिर दिवाली क्यों मनाई जाती है- 

पहली कथा  

यह कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है, कहा जाता है कि जब मर्यादा पुरषोत्तम रावण का वध और चौदह वर्ष का वनवास करने के बाद अयोध्या लौटे थे तो नगरवासियों से पूरे अयोध्या नगर को दीयों से जलाया था। उस दिन अंधेरी रात भी थी, तो भगवान राम के आगमन पर नगर को प्रज्वलित किया गया था। तब से ही भारतवर्ष में दिवाली के त्योहार का चलन शुरू हो गया।

दूसरी कथा  

दूसरी पौराणिक प्रचलित कथाओं के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने आताताई नरकासुर का वध किया था। दैत्यराज की मृत्यु पर प्रजा ने घी के दीये जलाकर दिवाली मनाई थी। इसके बाद ब्रजवासियों ने दीपों को जलाकर खुशियां मनाई थी। 

तीसरी कथा 

एक और कथा के अनुसार माता पार्वती ने राक्षस का वद करने के लिए जब महाकाली का रूप धारण किया था तो उसके बाद उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था। तब महाकाली का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए थे। तब भगवान शिव के स्पर्श से उनका क्रोध शांत हुआ था। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।

चौथी कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार दीपावली के दिन ही माता लक्ष्मी दूध के सागर से उत्पन्न हुई थी। दूध के सागर को केसर सागर के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही समुद्र मन्थन से आरोग्यदेव धन्वंतरि और भगवान कुबेर भी प्रकट हुए थे। इसलिए दिवली के दिन भगवान कुबेर और आरोग्यदेव धन्वंतरि की पूजा भी की जाती है।

पांचवी कथा 

कार्तिक मास की अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह बादशाह जहांगीर हकीकत से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे। इसलिए सिख समाज भी इसे त्यौहार के रूप में मनाता है। इतिहासकारों के अनुसार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के दिन प्रारंभ हुआ था।

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